सदानंद कोचे-Ex.कलेक्टर (IAS)
ह्युमन हैपिनेस फाऊंडेशन के संस्थापक,पूर्व IAS अधिकारी,लम्बा प्रसाशनिक अनुभव,कृषि विषयक सरकारी कामकाज,बचत गटों,कौशल्य विषयक,लघु उद्योग शुरु करने,स्पर्धा परीक्षा तथा सरकारी अधिकारियों को सेवा विषयक सतत मार्गदर्शन,अनुसूचित जाती के सर्वांगीड़ विकास हेतु सतत प्रयासरत
सरकारी सेवा में साढ़े तीन दशकों से भी अधिक समय में अलग-अलग पदों पर पूरे महाराष्ट्र में काम करने वाले सदानंद कोचे ने २७ वर्ष राज्य के राजस्व विभाग में काम किया। केंद्र सरकार के संघ लोकसेवा की ओर से भारतीय प्रशासनिक सेवा २००० में नामांकित महाराष्ट्र के आई.ए.एस.कैडर में विज्ञान, कला और कानून में स्नातकोत्तर उपाधि प्राप्त करने वाले एकमात्र अधिकारी सदानंद कोचे का जन्म भंडारा जिले की साकोली तहसील के एकोडी गांव में १ जुलाई, १९५३ को हुआ था। सदानंद कोचे अपने जीवन में इतनी प्रगति करेंगे, इस पर स्वयं सदानंद कोचे को भी भरोसा नहीं था, लेकिन कड़ी मेहनत तथा ध्येय निश्चित हो तो लक्ष्य को पाना मुश्किल नहीं होता। माता- पिता की इस सीख को उन्होंने सदैव याद रखा और कठिन वक्त में भी अपने लक्ष्य को याद रखते हुए वे लगातार आगे बढ़ते रहे और भारतीय प्रशासनिक सेवा में साढ़े तीन दशक से भी ज्यादा वक्त व्यतीत करने के बाद भी सदानंद कोचे को अपने गांव की माटी, अपने देश की कला संस्कृति, किसानों की समस्याओं का समाधान करना बहुत भाता है।
समाज सेवा के लिए रहते हैं सदा तत्पर
सन् १९९४ में सोलापुर में आए भयंकर भूकंप के दौरान प्रभावित लोगों को राहत पहुंचाने में किए गए उल्लेखनीय योगदान देने के लिए बेस्ट अधिकारी के रूप सम्मानित किए गए सदानंन कोचे ने अमरावती में विदर्भ महारोगी सेवा मंडल तपोवन में १९९९ से २००३ की कालावधि में कुष्ट रोगियों की बहुत सेवा की है। इस दौरान कोचे जी ने २५ अनाथ बच्चों को गोद लिया और उनकी पढ़ाई लिखाई कराके उनका विवाह भी करवाया। डॉ. बाबासाहेब भीमराव आंबेडकर को अपना आदर्श मानने वाले सदानंद कोचे अपनी प्रगति में माता-पिता के योगदान को स्वीकार करते ही है, साथ ही वे अपनी प्रगति में बोरकर, बागड़े, चुटे जैसे शिक्षकों के योगदान को कभी नहीं भूलते। अधिकारी के रूप में कम तथा समाज सेवक के रूप में ज्यादा काम करने वाले सदानंद कोचे ने प्रशासनिक कार्यों की तरह ही सामाजिक कार्यों में भी दिलचस्पी दिखायी है। १ अक्टूबर, १९९३ को लातूर में आए भूकंप के दौरान प्रभावित लोगों की मदद के लिए आगे रहे सदानंद कोचे का कहना है कि नागपुर मेट्रो के लिए ५००० करोड़ रूप खर्च करने के स्थान पर अगर भंडारा समेत राज्य के अन्य क्षेत्रों की जल समस्या के निवारण के लिए उक्त धनराशि का उपयोग किया जाता तो शायद सरकार के उक्त कार्य की मेट्रो सेवा से कहीं ज्यादा सराहना होती। स्लम एरिया में जागरूकता अभियान तथा नारी उत्थान से जुड़े अनेक कार्यक्रमों का आयोजन करके सदानंद कोचे ने समाज में यह संदेश दिया है कि वे समाज के उत्थान के प्रति कितने जागरुक हैं। किसानों, महिलाओं युवक युवतियों को जीवन में सफल होने के लिए अच्छे मार्गदर्शन की जरूरत होती है, इसी बात को ध्यान मे रखकर सदानंद कोचे ने अपनी मां कमला बाई कोचे, जिनका एक नाम सुमित्रा देवी भी है, उनके नाम पर सुमित्रा देवी ह्युमन हैपिनेस फाऊंडेशन की स्थापना की और उसके माध्यम से जमीन के बारे में अच्छी तरह से मार्गदर्शन देने के साथ साथ व्यक्तित्व विकास के बारे में मार्गदर्शन भी दिया जाता है। इसके अलावा नौकरी के संदर्भ में मार्गदर्शन, सरकारी योजनाओं की जानकारी, कृषि विषयक सरकारी कामकाज के संबंध में सलाह तथा मार्गदर्शन, बचत गटों, कौशल्य विषयक, लघु उद्योग शुरु करने, स्पर्धा परीक्षा तथा सरकारी अधिकारियों को सेवा विषयक मार्गदर्शन देकर उन्हें एक जागरुक नागरिक बनाने का काम सदानंद कोचे इन दिनों कर रहे हैं। सदानंद कोचे के बारे में उनकी पत्नी का कहना है कि साहब समय का बड़ा सम्मान करते हैं और लक्ष्य बनाकर अपना हर काम करते हें, इनसे हमें भी बहुत कुछ सीखने को मिला है।
चुनावी जंग में उतरने की चाहत
राजनीति के बारे में सदानंद कोचे का कहना है कि दिल्ली से गल्ली तक अच्छे तथा सुशिक्षित लोग राजनीति में आने चाहिए, तभी राजनीति की सूरत अच्छी होगी। भंडारा जिले की बदहाल पेयजल व्यवस्था, स्वास्थ्य, शिक्षा की बेहतर सुविधाएं न होने सदानंद कोचे बेहद आहत हैं, इसीलिए वे अक्टूबर माह में होने वाले महाराष्ट्र विधानसभा के चुनाव में सदानंद कोचे उतरना चाहते हैं, हालांकि अभी यह तय नहीं हुआ है कि कोचे किस पार्टी से चुनावी जंग में उतरेंगे। कोचे ने यह भी स्पष्ट किया है कि अगर उन्हें किसी पार्टी की ओर से टिकट नहीं मिला, तो वे निदर्लीय प्रत्याशी के रूप में चुनावी जंग में उतरेंगे। जनप्रतिनिधि का चुनाव करते समय हर मतदाता को उसके हर पक्ष के बारे में पूरी तरह जान लेना चाहिए। राजनीति को स्वार्थ सिद्धि करार देते हुए सदानंद कोचे कहते हैं कि राजनीति अर्थसंग्रह का माध्यम है, यह धंधा बनकर रह गयी है, राजनीति में सकारात्मक बदलाव करने की मंशा रखने वाले लोगों को आना चाहिए। किसानों के लिए बहुत कुछ करने की इच्छा रखने वाले सदानंद कोचे चाहते हैं कि कृषि को उद्योग का दर्जा दिया जाना चाहिए, उसे कॉस्ट ऑफ प्रोडेक्शन की सुविधा दी जाए। हर किसान को सरकार की ओर से सिंचाई के लिए सुविधाएं उपलब्ध करायी जाएं। किसान को बिजली, पानी की निःशुल्क सुविधाएं दी जाएं। फसलों को लेकर जो नियोजन शून्यता है, उसे खत्म करने जैसे कई मुद्दे हैं, जिसके समाधान के लिए सदानंद कोचे चुनावी जंग में उतरना चाहते हैं। अपने लंबी प्रशासनिक सेवा में राज्य के कई क्षेत्रों में काम करने के बाद सेवानिवृत्त हुए सदानंद कोचे कहते हैं कि सोलापुर के लोग उन्हें राज्य के अन्य क्षेत्रों के मुकाबले ज्यादा अच्छे लगे। जनसामान्य की सेवा करने की इच्छा के कारण ही राजस्व विभाग में कई वर्ष तक नौकरी करने वाले सदानंद कोचे का कहना है कि जब तक पीने का पानी शुद्ध नहीं होगा, तब तक बीमारियों से मुक्ति नहीं मिलेगी। धान की खेती के प्रसिद्ध भंडारा में चावल मिलों की हालत पर चिंतित सदानन कोचे कहते हैं कि भंडारा के नेताओं में दूरदृष्टि का बेहद अभाव है, यहां चावल का उत्पादन इतना ज्यादा होता है कि उसका विदेशों में निर्यात भी किया जा सकता है, लेकिन इस ओर किसी का भी ध्यान नहीं है। भंडारा शहर में कहीं भी गटर की व्यवस्था नहीं है। न्याय मिलने तथा जिस क्षेत्र में जो लोग रहते हैं उनकी इच्छा यही रहती है कि उनके क्षेत्र का विकास हो, लेकिन हकीकत यह है कि आज भी ग्रामीण क्षेत्र की जनता अपने मूलभूत अधिकारों से भी वंचित है। जनता के कल्याण के लिए सरकार की ओर से अनेक योजनाएं अमल में लायी जाती हैं, लेकिन अधिकांश लोग सरकारी योजनाओं से अनभिज्ञ रहते हैं।
शिक्षा
जानू जी कोचे तथा कमला बाई कोचे के सुपुत्र सदानंद की प्राथमिक शिक्षा (पहली से आठवीं कक्षा तक) एकोड़ी गांव के जिला परिषद स्कूल में हुई। बेहद गरीबी के बीच सदानंद कोचे ने अपनी शिक्षा जारी रखी। लाखनी के जिला परिषद स्कूल से ९ तथा १० वीं की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद कई उच्च डिग्रियां हासिल करने वाले सदानंद कोचे ने अपनी पहचान एक बहुत ही कुशल सरकारी अधिकारी के रूप में बनायी है। राज्य के विभिन्न क्षेत्रों में वरिष्ठ पदों पर काम करने के कारण सदानंद कोचे का राज्य की जनता, जनप्रतिधियों तथा सामाजिक संस्थाओं से बड़े ही मधुर संबंध हैं। अपनी सेवा काल में अपने अच्छे काम से अपनी खास पहचान बनाने वाले सदानंद कोचे ने सन् १९७५ में नागपुर विश्वविद्यालय से वनस्पति शास्त्र में मास्टर डिग्री हासिल करने के बाद सदानंद कोचे ने १९७८ में नागपुर विश्वविद्यालय से लोक प्रशासन विषय में स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त की। इतना ही नहीं सदानंद कोचे ने सन् १९८८ में भारतीय संविधान और अपराध विषय पर कानून क्षेत्र की स्नातकोत्तर (LLM) की डिग्री प्राप्त की। मंसूरी के लाल बहादुर शास्त्री नेशनल एकेडमी ऑफ एडमिशट्रेशन संस्था से सन् २०१० में मिड करियर ट्रेनिंग प्रोग्राम फेज-३ फार आईएएस आफिसर्स की परीक्षा अच्छे अंकों से उत्तीर्ण करने के बाद सन् २०११ में सदानंद कोचे ने इंदौर (मध्यप्रदेश) के इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट (I.I.M) का कोर्स पूर्ण किया। शिक्षा के प्रति लगाव रखने वाले सदानन कोचे ने इससे पहले सन् २००५ में आपदा प्रबंधन में डिजास्टर मैनेजमेंट ट्रेनिंग का कोर्स करने के बाद सन् २००९ में हैदराबाद के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ रूरल डेवलपमेंट सेंटर से नरेगा (NREGA) ट्रेनिंग की।
विचार किए बगैर की गई शिक्षा व्यर्थ
कोचे कहते हैं कि विचार किए बगैर पढ़ाई करना, व्यर्थ श्रम करने जैसा है। दसवीं, बारहवीं कक्षा तक पढ़ाई करने को शिक्षा न मानने वाले सदानंद कोचे कहते हैं कि अगर किसी को उच्च पद प्राप्त करना है तो उसको सबसे पहले अपना लक्ष्य बनाना चाहिए और उसी के अनुरूप अध्ययन करना चाहिए। कोचे कहते हैं कि कितना ज्यादा पढ़ा यह मायने नहीं रखता, मायने यह रखता, जो पढ़ा मेरे लिए कितना उपयोगी था।
शासकीय सेवा कार्य
अमेरिका, इंगलैंड, चीन, दक्षिण कोरिया इन देशों के अलवा यूरोप के अंतर्गत आने वाले देशों का दौरा कर चुके सदानंद कोचे ने अपनी सरकारी नौकरी के सेवाकाल में लोकसभा के ८ तथा विधानसभा के ६ चुनावों का कामकाज देखा है। राष्ट्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय स्तर के राजनीतिक, सामाजिक तथा आर्थिक मुद्दों पर सघन अध्ययन करने वाले सदानंद कोचे ने सन् १९७६ से १९८० की कालावधि में नागपुर के सरकारी मेडिकल कॉलेज में बॉयो केमिस्ट पद कार्य करते वक्त गांव से आने गरीब तथा जरूरतमंद मरीजों को अपनी ओर से जितना भी संभव हो सका, सहयोग किया है। सन् १९९१ से १९९६ की कालावधि में सोलापुर के निवासी उपजिलाधिकारी, सोलापुर के उपविभागीय दंडाधिकारी, जिला आपूर्ति अधिकारी रहते समय सदानंद कोचे ने जो काम किए, उससे इस बात की जानकारी मिली कि सदानंद कोचे एक अलग धारा तथा संकट फंसे लोगों की मदद करने के लिए सदैव तत्पर रहने वाले अधिकारी हैं। १ अक्टूबर, १९९३ को लातूर तथा उस्मानाबाद में आए भूकंप के दौरान सोलापुर से स्थिति पर नियंत्रण रखा जा रहा था, उस दौरान सदानंद कोचे अपने कार्यालय में सुबह छह बजे तक रात १२ बजे तक कार्यरत रहते थे। भूकंप प्रभावितों के लिए विश्व के कोने कोने से आने वाली हर तरह की मदद पहले सोलापुर के गोदाम मे आता थी, बाद में सभी राहत सामग्रियों का उचित नियोजन उसे लातूर और उस्मानाबाद भेजने का काम सदानंद कोचे ने बहुत अच्छी तरह से किया है। कोचे जी का काम यही तक सीमित नहीं रहा, भूकंप की मार झेल रहे लातूर तथा उस्मानाबाद के लोगों की हालत की जानकारी लेने के लिए राष्ट्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय स्तर के सभी प्रिंट तथा इलेक्ट्रानिक मीडिया को जानकारी देने, वी.वी.आई.पी. स्तर के लोगों का प्रोटोकॉल संभालने वाले भूकंप की आपदा के समय सोलापुर में वैश्विक बैंकों के प्रतिनिधियों के लिए सभी जरूरी व्यवस्थाएं कीं।
पुणे में सन् १९९६ से १९९९ की कालावधि में निवासी उप जिलाधिकारी तथा अपर दंडाधिकारी रहते समय बहुत सी सरकारी योजनाओं को बहुत ही अच्छी तरह संचालित किया, इस कारण सदानंद कोचे का पुणे पगड़ी पहनाकर स्वागत किया गया। मार्केट यार्ड के व्यापारियों से अच्छे रिश्ते होने के कारण पुणे शहर में अनाज की कभी कमी नहीं होने दी। सन् १९९८ के मार्च,अप्रैल माह में एक साथ सात पदों का कार्यभार संभालने वाले सदानंद कोचे बताते हैं कि वह समय मेरे लिए बहुत ही चुनौतीपूर्ण था, क्योंकि उस समय मेरे कंधों पर पुणे के जिलाधिकारी के साथ साथ अपर जिलाधिकारी, निवासी उपजिलाधिकारी, जिला आपूर्ति अधिकारी, पुणे अनाज वितरण अधिकारी, पुणे उपविभागीय दंडाधिकारी, पुणे- मुंबई- पुणे राष्ट्रीय राजमार्ग के भू संपादन अधिकारी जैसे बेहद महत्वपूर्ण पदों की जिम्मेदारी एक साथ निभाने का मौका आया था। कोचे कहते हैं कि एस साथ कई पदों का दायित्व निभाने से मुझमें अपना काम पूरी तत्परता से करने का जो जज्बा पैदा हुआ, वह आज तक मुझ में जिंदा है। सन् १९९६ तथा १९९८ में हुए लोकसभा चुनाव के दौरान चार हजार लोगों को (अधिकारियों और कर्मचारियों को मिलाकर) चुनाव कार्य संबंधी प्रशिक्षण देने वाले सदानंद कोचे १९९९ से २००३ की कालावधि में अमरावती में पुनर्वास विभाग के उपायुक्त पद की जिम्मेदारी संभाली। इस दौरान मेलघाट व्याघ्र प्रकल्प के अंतर्गत आने वाले गांवों में से तीन गांवों को इस प्रकल्प से बाहर लाकर उनका पुनर्वास करने जैसा महत्वपूर्ण कार्य करके सदानंद कोचे ने वहां के लोगों के बीच अपनी अलग पहचान बनायी। १९९९ से २००३ की कालावधि में ही विदर्भ महारोगी सेवा मंडल तपोवन नामक संस्था के प्रशासकीय संचालक पद की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी संभालने वाले सदानंद कोचे ने गंभीर रोगों से ग्रस्त तथा निराश्रित बच्चों को सरकार की अलग अलग योजनाओं का लाभ दिलवाकर उनका जीवन सुखमय बनाने में अहम भूमिका अदा की। विदर्भ की धरती के पुत्र सदानंद कोचे ने पवित्र कुंभ नगरी नासिक में भी अपनी सेवाएं दी हैं। नासिक में २००३ -२००४ में मनोरंजन कर उपायुक्त पद पर काम करते समय सदानंद कोचे ने जुलाई, २००३ में नासिक में आयोजित किए गए कुंभ मेले के नियोजन में अहम भूमिका अदा की। इसी कालावधि श्री कोचे ने अहमदनगर के अकालग्रस्त १० लाख लोगों को सरकार की विभिन्न योजनाओं का लाभ दिलवाया।
१० हजार शिक्षकों के लिए अनिवार्य किया ड्रेस कोड
पुणे में २००४ से २००८ की कालावधि में पुनर्वास विभाग के उपायुक्त रहते समय सदानंद कोचे ने पुणे संभाग के १०० सिंचाई परियोजना के लिए समन्वयक की भूमिका निभाई। २००८ से २०११ में एक बार फिर सदानंद कोचे को अपने सेवाएं विदर्भ के बुलढाणा जिले में देने का अवसर मिला। जिला परिषद बुलढ़ाणा के मुख्य कार्यकारी अधिकारी के रूप में अपनी जिम्मेदारी बुलढ़ाणा में निभाते वक्त सदानंद कोचे द्वारा जिला परिषद द्वारा संचालित स्कूलों के १० हजार शिक्षकों के ड्रेस कोड अनिवार्य करने के कारण जिला परिषद स्कूलों के शिक्षकों तथा विद्यार्थियों में नवचैत्नय का संचार हुआ। कोचे के इस नई नीति के कारण जिला परिषद स्कूलों के शिक्षा के स्तर में भी अच्छा खासा सुधार हुआ। कोचे के प्रयासों से ही बुलढाणा जिला परिषद को आई.एस.ओ.९००१ का प्रमाण पत्र भी प्राप्त हुआ। इतना ही नहीं समाज के हर स्तर के लोगों का सहयोग लेकर केंद्र तथा राज्य सरकार की सभी योजनाओं का लाभ सामान्य जनता को दिलवाने में अहम भूमिका अदा की।
स्त्री भ्रूण हत्या पर कार्य
अपनी सरकारी सेवा के अंतिम पड़ाव में मराठवाडा के अंतर्गत आने वाले बीड जिले के जिलाधिकारी का पदभार २०११ -१२ में संभालने के बाद भी कोचे के जनहितों के कार्यो पर विराम नहीं लगा। यहां कार्यरत रहते समय कोचे स्त्री भ्रूण हत्या करने वाले डॉ. सुदाम मुंडे तथा उसकी पत्नी सरस्वती मुंडे दोनों को काली करतूतों के लिए धरदबोचा था। कोचे के इस कार्य की सर्वत्र सराहना तो हुई ही साथ ही उनके इस कार्य के लिए उन्हें सरकार की ओर सम्मानित भी किया गया था। डा सुदाम मुंडे २०१२ से जेल की हवा खा रहा है। डॉ सुदाम मुंडे के अस्पताल को सी.आर.पी.सी. की धारा १३३ के तहत सील बंद कर दिया गया है। इतना ही डां मुंडे का रजिस्ट्रेशन भी रद्द कर दिया गया है। कोचे की इस कार्रवाई के बाद बीड जिले में स्त्री भ्रूण हत्या जैसे पाप पर रोक तो लगी ही साथ ही राज्य में कन्या जन्म दर में वृद्धि भी हुई है। इस मुद्दे पर जब विभिन्न चैनलों पर सदानंद कोचे के साक्षात्कार में इस संदर्भ में पूरी घटना का खुलासा किया गया तो पूरा सच देश के सामने आया। कोचे यही नहीं रुके, उन्होंने इस पूरे प्रकरण से जुड़े सभी आरोपियों को सजा सुनाए जाने का रास्ता भी साफ किया। अहमदगर से परली तक रेल लाइन बिछाने के लिए जमीन अघिग्रहण का काम सिर्फ एक साल की अल्पावधि में पूरा किया। जिला परिषद, पंचायत समिति, नगर परिषद तथा विधानसभा चुनाव कराने की जिम्मेदारी को बहुत अच्छी तरह से पूर्ण किया। बीड जिले में कानून तथा सुव्यवस्था बनाए रखने के लिए अपने मातहत काम करने वाले अधिकारियों सदैव मार्गदर्शन दिया तथा उन्हें इस बात के निर्देश दिए कि वे जिले की कानून व्यवस्था बिगाड़ने वालों पर पैनी नज़र रखें।
वर्तमान में संचालित किए जा रहे कार्य
अपने लंबे प्रशासनिक कार्य के बाद भी निरंतर काम करते रहने की लालसा के कारण सदानंद कोचे नागपुर के प्रीमियर एकेडमी फॉर एडमिनीस्ट्रेशन से जुड़े और वर्तमान में वरिष्ठ सलाहकार की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं। वे यूपीएससी तथा एमपीएससी के विद्यार्थियों का मार्गदर्शन करके उन्हें सुखद भावी जीवन के लिए तैयार कर रहे हैं। नागपुर के नागार्जुन इंस्टीट्यूट ऑफ इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी मैनेजमेंट सलाहकार मंडल के सदस्य की जिम्मेदारी संभालने वाले सदानंद कोचे पुणे के यशदा में फेकेल्टी मेंबर हैं। राज्य के कई जिलों के स्कूलों, कॉलेजों तथा प्रशिक्षण संस्थाओं में अतिथि प्रशिक्षक के रूप में कार्य करने वाले सदानंद कोचे विद्यार्थियों का मार्गदर्शन करके उन्हें अपने लक्ष्य के लिए तैयार कर रहे हैं। अपनी मॉ. कमलाबाई के मायके के नाम सुमित्रा देवी के नाम से स्थापित ह्युमन हैपिनेस फाऊंडेशन के संचालक सदानंद कोचे अपने फाऊंडेशन के माध्यम से गरीब तबके के लोगों, विद्यार्थियों का मार्गदर्शन देने का काम बड़ी तल्लीनता से कर रहे हैं।
प्रकाशित पुस्तकें
१ .व्हाड वुई कैन लर्न फ्रॉम साऊथ कोरिया
इस पुस्तक में दक्षिण कोरिया द्वारा की गई प्रगति के आधार पर हम भी अपने देश में प्रगति कर सकते हैं, इस बारे में लिखा गया है। सदानंद कोचे ने दक्षिण कोरिया में दो सप्ताह का प्रशिक्षण लेकर दक्षिण कोरिया की प्रगति कैसे हुई इस बात को अच्छी तरह से जाना और उसी के बारे प्रस्तुत पुस्तक में अपने अनुभव साझा किए हैं।
२ .बीडची लोकशाही
सदानंद कोचे ने इस पुस्तक में बीड में जिलाधिकारी रहते समय जो अनुभव लिए, उसका विस्तार से उल्लेख किया है।
३ .नो-फियर, नो फेव्हर २०१३
इस पुस्तक में आईएएस अधिकारी सदानंद कोचे ने अपनी जीवन यात्रा के बारे में लिखा है। इस पुस्तक में सदानंद कोचे ने अपने गांव से लेकर पूरी प्रशासनिक सेवा के अनुभव का उल्लेख किया है। इस पुस्तक में कोचे जी ने यह बताया है कि अगर मनुष्य का ध्येय निश्चित होगा और वह अगर शुद्ध होगा तो मनुष्य को जो भी पाना हो, उसे वह प्राप्त कर सकता है।
Other Links
बीड जिल्ह्यासह राज्यातल्या स्त्रीभ्रूण ह्त्या थांबाव्यात यासाठी राज्य सरकार कसोशीनं प्रयत्न
बीडची लोकशाही
Special Talk With Sadanand Koche (IAS)
https://www.youtube.com/watch?v=AlUzbpHSeXU
http://bit.ly/30IQJkc
पुरस्कार, सम्मान
- सोलापुर में १९९४ में बेस्ट अधिकार का सम्मान प्राप्त किया।
- बेस्ट प्रोफार्मेंस पुरस्कार १९९८ में पुणे में प्रदान किया गया।
- सुदाम मुंडे की गिरफ्तारी करवाने में अहम भूमिका अदा करने के कारण राज्य सरकार की ओर से सम्मानित किए गए.