पद्मश्री डॉ. प्रकाश आम्टे
घर,समाज,परिवार से दूर गहन वन में आदिवासियों की समर्पण भाव से सेवा का दूसरा नाम है डॉ. प्रकाश आम्टे
वन्यजीवों की शरणस्थली डॉ. प्रकाश आमटे का जीवन मडिया गोंड के बेहतरी व उनकी सेहत के साथ-साथ शिक्षा व जागरुकता को बढाने के लिये समर्पित है
डॉ. प्रकाश बाबा आमटे महाराष्ट्र में एक चिकित्सक और समाज सेवक हैं.वह मेग्सेसे पुरस्कार से सम्मानित बाबा आमटे के पुत्र हैं,तथा आप और आपकी पत्नी डॉ. मंदाकिनी आमटे दोनो ही ने अपने काम को लोक बिरादरी प्रकल्प के माध्यम से महाराष्ट्र के जिला गढ़चिरोली,व इससे लगे हुए उसके पडोसी राज्य आंध्रप्रदेश , मध्यप्रदेश के गोंड जनजाति की सेवा भाव व उद्धार कार्यों के कारण आप दोनो को 2008 में 'Community Leadership' केटेगरी में मेग्सेसे पुरस्कार प्रदान किया गया . प्रकाश बाबा ने चिकित्सीय विद्या गर्वमेंट मेडिकल कॉलेज नागपुर से प्राप्त आपके भाई विकास आमटे भी चिकित्सक हैं ,वह आंनदवन में अपने पिता के आश्रम और हॉस्पिटल के योजनाओं को संभालते है.गोंड जनजाति की दुर्दशा में भी उनके सेवा भाव से प्रेरित होकर आपके पिता ने गोंड जनजाति के उद्धार का स्वपन देखा व आप भाईयो ने उनके स्वपन को पूर्ण करने का प्रयत्न किया.
१९७४ में उन्हें उनके पिता का सन्देश मिला कि वह माडिया गौंड जाति के आदिवासियों के हित में उन्हीं आदिवासियों के क्षेत्र में पहुँचकर काम शुरू करें। पिता के इस आह्वान पर प्रकाश ने अपनी नवविवाहिता पत्नी मंदाकिनी आम्टे को साथ लिया और हेमलकसा की ओर, अपनी शहरी प्रेक्टिस को भूलकर, चल पड़े। उनकी पत्नी मंदाकिनी भी पोस्ट ग्रेजुएट डॉक्टर थीं और उस समय एक सरकारी अस्पताल में काम कर रही थीं। वह भी पति के साथ अपनी नौकरी छोड़कर हेमलकसा के लिए चल पड़ीं।
हेमलकसा में प्रकाश दम्पति ने एक बिना दरवाजे की कुटिया बनाई और वहाँ बस गए, जहाँ न बिजली थी, न निजता की गोपनीयता। वहाँ इन दोनों ने माडिया गौंड आदिवासियों के लिए चिकित्सा तथा शिक्षा देने का काम सम्भाला। ये लोग एक पेड़ के नीचे अपना दवाखाना लगाते और बस आग जलाकर गर्माहट पाने की व्यवस्था करते। वहाँ के आदिवासी बेहद शर्मीले तथा संकोची स्वभाव वाले थे और उनके मन में इन लोगों के प्रति विश्वास लगभग नहीं था। लेकिन प्रकाश तथा मंदाकिनी ने हार नहीं मानी। उन दोनों ने उन आदिवासियों की भाषा सीखी और धीरे-धीरे उनसे संवाद बनाकर उनका विश्वास जीतना शुरू किया। इस क्रम में उनके कुछ अनुभव बहुत सार्थक रहे। इन लोगों की कुशल चिकित्सा से मिर्गी के रोग से ग्रस्त एक लड़का जो बुरी तरह आग में जल गया था, चमत्कारिक रूप से ठीक हो गया, इसी तरह से एक मरणासन्न आदमी जो दिमागी मलेरिया से पीढ़ित था, एकदम ठीक होकर जी उठा। इस तरह जब भी इनकी चिकित्सा से कोई आदिवासी स्वस्थ हो जाता तो प्रकाश बताते हैं कि वह चार और मरीज लेकर लौटता। इस क्रम से आदिवासियों के बीच प्रकाश तथा मंदाकिनी अपनी जगह बनाते चले गए।
अस्पताल की स्थापना
१९७५ में स्विट्जरलैण्ड की वित्तीय सहायता से हेमाल्सका में एक छोटा-सा अस्पताल बनाया जा सका, जिसमें बेहतर चिकित्सा संसाधन उपलब्ध थे। इस अस्पताल में प्रकाश और मंदाकिनी के लिए कुछ आपरेशन भी कर पाना सम्भव हो सका। इन लोगों ने मलेरिया, तपेदिक, पेचिश-दस्त के साथ आग से जले हुए लोगों का तथा साँप-बिच्छू आदि के काटे का इलाज भी बेहतर ढंग से शुरू हुआ। आदिवासियों के जीवन के अनुकूल इन्होंने यथासम्भव अस्पताल का काम-काज, अस्पताल के बाहर, पेड़ के नीचे किया।
स्कूल की स्थापना
प्रकाश तथा मंदाकिनी ने इस बात को समझा कि निरक्षरता के कारण ये आदिवासी वन विभाग के भ्रष्ट अधिकारियों तथा दूसरे लालची लोगों के हाथों अक्सर ठगे जाते हैं। आम्टे दम्पति ने आदिवासियों को उनके अधिकारों की जानकारी देनी शुरू की, तथा वन अधिकारियों से, इनकी तरफ से बातचीत करनी शुरू की, प्रकाश ने प्रयासपूर्वक भ्रष्ट वन अधिकारियों को वहाँ से हटवाया भी और साथ ही १९७६ में हेमाल्सका में एक स्कूल की स्थापना की। माडिया गौंड जाति के लोग अपने बच्चों को स्कूल भेजने में हिचकते थे, लेकिन समय के साथ स्कूल ने विकास किया तथा आदिवासियों को पढ़ाई-लिखाई के साथ काम-धन्धे से सम्बन्धित शिक्षा भी देनी शुरू कर दी। प्रकाश मंदाकिनी के अपने बच्चे भी इसी स्कूल में पढ़ने लगे।
हेमाल्सका स्कूल ने इन आदिवासियों को खेती-बाड़ी, फल-सब्जी उगाना तथा सिंचाई आदि की जानकारी दी तथा इन्हें वन संरक्षण के बारे में भी समझाना शुरू किया। वन संरक्षण में आदिवासियों को वन्य पशुओं के संरक्षण का भी समझाना शुरू किया। वन संरक्षण में आदिवासियों को वन्य पशुओं के संरक्षण का भी महत्त्व समझाया गया। आम्टे दम्पति ने हेमाल्सका में लावारिस पशुओं की देख-भाल के लिए एक स्थान भी बनाया, जिससे पशुओं का जीवन सुरक्षित रहने लगा। इस समय से आदिवासियों का पशुओं को भोज्य पदार्थ की तरह प्रयोग करना कम होने लगा। वह अनाज तथा खेती की उपज पर निर्भर होना सीखने लगे। प्रकाश आम्टे के इस काम में रमे होने का अन्दाज इसी बात से लगाया जा सकता है कि दौड़-धूप तथा आने-जाने के दौर में इन्हें अपने पिता बनने का पता भी बाद में लगा और वह आनन्द से विभोर हो उठे। इस बीच मानो वह इस ओर से लगभग बेखबर थे। यह उनके जीवन में एक न भुलाई जा सकने वाली घटना की तरह दर्ज हुआ और यह भी, कि खुद को भी भूल कर किसी काम में खो जाना क्या होता है।
वन्यजीवों की शरणस्थली
डॉ. प्रकाश आमटे और उनकी पत्नी डॉ. मंदाकिनी आमटे के रहन-सहन का तरीका अनूठा है। उन्होंने अपने ही घर के पिछवाड़े में वन्यजीवों की शरणस्थली बना रखी है, वे आदिवासी लोगों और स्थानीय वन्य पशु संपदा का भी संरक्षण कर रहे हैं। सत्तर के दशक की शुरुआत में जब गढ़चिरौली के दंडकारण्य वनों में दोनों टहल रहे थे तभी उनका सामना शिकार कर लौटे आदिवासियों के एक झुंड से हो गया। उनके हाथों में मृत बंदरों का एक जोड़ा था और उनका बच्चा जीवित था और अपनी मां का दूध पीने की कोशिश कर रहा था। डॉ. प्रकाश ने आदिवासियों से पूछा कि वे इन मरे बंदरों का क्या करेंगे? उनका उत्तर था कि हमने तो इन्हें अपने भोजन के लिए मारा है। जब उन्होंने पूछा कि वे छोटे बच्चे का क्या करेंगे तो उनका कहना था, इसे भी खा लेंगे।
इस घटना ने आमटे परिवार का जीवन बदल दिया। माडिया गोंड आदिवासी किसी मनोरंजन या मानसिक विकास के लिए पशु को नहीं मारते वरन इन्हें खाकर वे अपनी भूख मिटाते हैं। इस घटना के दौरान डॉ. प्रकाश ने उनसे कहा कि अगर वे उन्हें बंदर का बच्चा देंगे तो वे उन्हें बदले में चावल और कपड़े दे देंगे। थोड़ी झिझक के साथ आदिवासियों ने उनकी बात मान ली। लाल मुंह वाला बंदर का बच्चा हेमलकासा गांव में उनके घर का हिस्सा बन गया। डॉ. प्रकाश ने इसका नाम बबली रखा जो कि आदिवासियों की देवी का नाम था, जिसकी वे पूजा करते थे।
किसी को भी नहीं पता था कि आमटे परिवार द्वारा अपने घर के पिछवाड़े बने जानवरों की अभयारण्य 'एनीमल आर्क' में पलने वाली बबली पहली पशु थी। धीरे-धीरे यह सैकड़ों अनाथ और घायल पशुओं का घर बन गया। डॉ. प्रकाश ने माडिया आदिवासियों से कहा कि वे खाने के लिए जानवरों के बच्चों को न मारे और अगर उन्हें घायल, अनाथ जानवर दिखें तो वे उनके पास ले आएं। ऐसा करने पर वे उन्हें खाना और कपड़े देंगे।
एक समय तक हेमलकासा और आमटे परिवार के साथ करीब 300 प्राणी रहते थे। इनमें सियार, तेंदुए, जंगली बिल्लियां, साहियां, मैकाक बंदर, भालू, बड़े आकार की छिपकलियां, चूहों जैसे पूंछ वाले लंगूर, चार सींगों वाले बारहसिंगे, काले रंग के बारहसिंघे, चूहों के आकार वाले सांप, भारतीय अजगर, घड़ियाल, मांसभक्षी छिपकलियां, जहरीले करैत सांप, मोर, चित्तीदार हिरण और नीलगाय भी इस पार्क में शामिल हैं।
लोक बिरादरी प्रकल्प
M.B.B.S. करने के बाद आप M.S. की पढा़ई कर रहे थे तब आपकी परियोजना के लिए महाराष्ट्र सरकार की तरफ से जमींन प्रदान की गई.आप ने M.S. की पढाई छोड़ दिया और 1973 में हेमलकसा जाकर लोक बिरादरी प्रकल्प की स्थापना की. यह परियोजना जनजातिएँ लोग ,ज्यादातर गढ़चिरोली के जंगलो में रहने वाले मडिया़ गोंड के विकास के लिए थी.आपने वही रहने का फैसला किया और लगभग बीस वर्षो तक बिना बिजली व टेलीफोन व कई मूलभूत सुविधाओ के अभाव में आपने अपना सेवा कार्य जारी रखा.और कई बार तो आपतकालीन सर्जरी को बिना बिजली के किया व सफल किया.तथा जागरूकता को बढाया व जनजातिएँ परम्परा को समझा,जनजातिएँ लोगो ने भी आपको सहयोग दिया,और यह परियोजना तीन नये भागो मे बँट गई हॉस्पिटल- लोक बिरादरी प्रकल्प दवाखाना, विद्यालय लोक बिरादरी प्रकल्प आश्रम शाला(होस्टल) ,और अनाथ व असहाय जख्मी जंगली जानवरो का आमटे एनिमल पार्क(Amte animal park).यह सब उस क्षेत्र के जनजाति लोगो की शिक्षा व सेहत के लिए है.हेमलकसा जनजाति क्षेत्र है, और यह परियोजना सिर्फ हेमलकसा में ही सेहत सुधार के लिए अकेले ही सालाना 40000 लोगो को यह सुविधा मुहैया कराता है.और लोक बिरादरी प्रकल्प स्कूल 600 विद्यार्थियो को रहने की सुविधा व स्कॉलर प्रदान करता है.यह पूरी तरह से लोक ग्रामीण गोंड जनजाति व सभी लोगो के लिए लोक बिरादरी प्रकल्प की स्थापना मुरलीधर देवीदास आमटे ( बाबा आमटे) ने दिसम्बर 1973 में की थी.बाबा के देखे सपनो को उनके बेटो ने सफलता चलाया व गोंड जनजाति के सेवा भाव को अपना कर उसी जनजाति के उद्धार के मार्ग को प्रशस्त किया.
बाबाआमटे परिवार की तीसरी पीढ़ी,- बाबा आमटे के पुत्र डॉ. प्रकाश के बेटे अनिकेत और दिगंत, यहां की ज़िम्मेदारी संभालते हैं.अनिकेत कहते हैं, "मानव को सम्मानित जीवन देना बाबा आमटे का मूल विचार था जो आज भी जारी है. हम यहां आदिवासी छात्रों को मुफ़्त शिक्षा देते हैं और लोगों का मुफ़्त इलाज करते हैं.""यहां पढ़े हुए अनेक छात्र सरकारी अफ़सर और पुलिसकर्मी बने हैं लेकिन 99 प्रतिशत छात्र इसी इलाके में काम करते हैं. वे लोग बाबा आमटे के विचारों एवं व्यक्तित्व से प्रेरित होकर काम करते हैं. हम इसे एक बड़ी उपलब्धि मानते हैं."
Amte's animal park एक wildlife orphanage और sanctuary है ,इस पार्क उन अनाथ नवजात जानवरो के लिए है जिनके माँ -बाप को जनजातिय लोगो के द्वारा सिर्फ खाने के लिए मार दिया जाता है,ना कि मनोरंजन के लिए लेकिन वह उन अनाथ जानवरो को अपने साथ रख लेते है.आमटे अनाज व कपडों के बदले उन अनाथ जानवरो को अपने पार्क मे ले आते है. इतना सब करना आसान नही होता है, आज यही पार्क अलग -अलग जानवरो से भर गया है. जैसे तेंदुआ, स्लॉथ भालू, साँप, चिडियाँ ,हिरण,उल्लू, मगरमच्छ, लकडबग्घा,और बंदर.
हेमलकसा गडचिरोली जिले का गहन आदिवासी क्षेत्र हे ,चंद्रपुर से १५० किमी दूर यह इलाका नक्सलवाद से प्रभावित भी है.आज यहाँ सालाना ४०,००० व्यक्तियों को स्वास्थ्य देखभाल प्रदान की जाती है,आश्रम स्कूल में ६०० से ज्यादा छात्र, अध्यनरत है ।
डॉ प्रकाश आमटे के द्वारा लिखी पुस्तकें..
प्रकाशवाटा(रोशनी की ओर )डॉ प्रकाश की जीवनकथा है. यह मूलत: मराठी में है,जिसको इंगलिश, गुजराती, व कन्नड़ मे उद्वाचन किया गया है.डॉ. प्रकाश ने अपने जंगली दोस्तो के साथ आश्चर्य चकित करने वाले अनुभवो को रानमित्रा('जंगल के दोस्त) नामक किताब मे लिखा है.
डॉ प्रकाश आमटे और उनकी पत्नी मंदाकिनी आमटे करीब 45 सालों से गरीब मसीहों की सेवा कर रहे हैं। डॉ प्रकाश आमटे पर फिल्म बनाई गई है। जिसका नाम Dr Prakash Baba Amte : The Real Hero है। इस फिल्म में नाना पाटेकर ने लीड रोल निभाया था।
>18 अगस्त 2017 -निलू फुले समाज भूषण पुरस्कार
>27 जून 2017- लक्ष्मीपत सिंघानिया आईआईएम लखनऊ, भारत के राष्ट्रपति प्रणव कुमार मुखर्जी से प्राप्त राष्ट्रीय नेतृत्व पुरस्कार
>2014:मदर टेरेसा अवार्ड फॉर सोशल जस्टिस
>20 दिसंबर 2016 - साहित्य के डॉक्टर - एमयूएचएस, नासिक, महाराष्ट्र
>2012:लोकमान्य तिलक अवार्ड जॉइंटली विथ डॉ .विकास आम्टे
>2009 - गोडफ्रे फिलिप्स लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड
>2008 - महाराष्ट्र टाइम्स,नायक- परिवर्तन पुरस्कार
>डॉ शिवराम माली ट्रस्ट, कोल्हापुर 2008 - कृतार्थ सन्मान
>पुलोत्सव पुणे 2008 - अनन्य सन्मान
>2008 - सामुदायिक नेतृत्व 2008 के लिए रमन मैगसेसे पुरस्कार
>2008 सोशल सर्विस अवॉर्ड, डॉ निर्मलकुमार फडकुले फाउंडेशन, सोलापुर,
>एमएस इंडिया 2008 - सदी के मानवतावादी परिवार, शेर क्लब, मुंबई, भारत
>2007 - नाग-भूषण पुरस्कार, नाग भूषण पुरस्कार फाउंडेशन, नागपुर,
>भारत 2006 - मस्तक अवॉर्ड,
>भारत 2006 - सह्याद्री नवत्रना पुरस्कार,
>सेवा-रत्न, दूरदर्शन भारत
>2005 - इंडियन मर्चेंट्स चैम्बर पुरस्कार, भारत
>2002 - पद्म श्री, भारत सरकार
>2000 - पशु कल्याण, वेणु मेनन ट्रस्ट, नई दिल्ली, भारत के लिए वेण मेनन लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड
>1999 - आदर्श कार्यकर्ता पुरस्कार, जय भवानी ट्रस्ट, पुणे, भारत
>1998 - पॉल हैरिस फेलो पुरस्कार, रोटरी क्लब, नागपुर, भारत
>1998 - महावीर अवॉर्ड, भगवान महावीर फाउंडेशन, चेन्नई, भारत
>1997 - द जस्टिस के.एस. हेगडे पुरस्कार, न्यायमूर्ति के.एस. हेगडे चैरिटेबल फाउंडेशन, नित, कर्नाटक, भारत
>1997 - अशोक गोंडिया पुरस्कार, ताबीबी (मेडिकल) सेवा, वाईएमजीए, राजकोट, गुजरात, भारत
>1995 - दीवालीबेन मेहता पुरस्कार, मेहता ट्रस्ट, मुंबई, भारत
>1995 - मोनाको राज्य (फ्रांस) द्वारा डॉ. प्रकाश और डॉ.मन्दाकिनी आम्टे के सम्मान में डाक टिकट जारी
>1992 - जेम्स एस टोंग मेमोरियल अवॉर्ड्स, भारत के स्वैच्छिक स्वास्थ्य संघ (वीएचएआई), नई दिल्ली, भारत
>1992 - आदिवासी मित्रा, एम.के.गांधी चैरिटेबल ट्रस्ट, नागपुर, भारत
>1992 - गोदावरी गौरवव संमान (लोकसेवा), कुसुमगराज प्रतिष्ठान, नासिक, महाराष्ट्र, भारत
>1988- 9 1 - नागपुर विश्वविद्यालय के सीनेट में चांसलर का नामांकित
>1984 - आदिवासी सेवक पुरस्कार, महाराष्ट्र सरकार, भारत.
सोशल वर्कर
17 NOV 219 :डॉ. प्रकाश आमटे लाईफटाईम अचिव्हमेंट पुरस्काराने बिल गेट्स यांच्या हस्ते गौरवान्वित