डॉ.मोहन भागवत
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सरसंघचालक
ओजस्वी वाणी,मधुर व्यवहार,विद्वता प्रचुर,व्यवहार चातुर्य,
अद्भुत संगठन शक्ति सम्पन्न व्यक्तित्व
राष्ट्रभक्ति का वो चरम जहां अन्य सब कुछ गौण हो जाता है उसकी मिसाल है डॉ. मोहन भागवत सहज सरल मिलनसार व्याक्तित्व के धनी डॉ. मोहन भागवत का जीवन युवाओं के लिए प्रेरणा का अद्भुत स्त्रोत है.
पिता मधुकरराव भागवत के चार पुत्रों में तीन पुत्र, एक पुत्री उसमे सबसे बडे मोहन है.मोहन ने कभी प्रसिद्धि को या स्वयं को प्रचारित करने के लिए कोई काम नही किया केवल सेवा के लिए आगे बढ़े .
मोहन भागवत का जन्म ११ सितंबर १९५० को महाराष्ट्र के सांगली में हुआ था ,बाद में मोहन भागवत के दादा नारायण भागवत महाराष्ट्र के सतारा से चंद्रपुर में आकर बस गए मोहनजी का चंद्रपुर की गलियों में ही खेलते- कूदते हुए बचपन गुजरा . मोहन भागवत के दादा नारायण भागवत राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ के संस्थापक डॉक्टर हेडगेवार के स्कूल के दिनों के दोस्त भी थे यही वजह है कि मोहन भागवत का संघ से पुराना नाता रहा है. उनका संघ से ये तीन पीढ़ियों पुराना कनेक्शन है.
मोहन भागवत के दादा नारायण भागवत संघ के स्वयं सेवक थे और उनके पिता मधुकर राव भागवत भी राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ के प्रचारक रहें है उन्होंने गुजरात में प्रांत प्रचारक के तौर पर भी काम किया था ,आम तौर पर संघ के प्रचारक शादी नहीं करते हैं लेकिन जब मधुकर राव भागवत ने शादी करने का फैसला किया तो वह वापस चंद्रपुर आ गए और चंद्रपुर क्षेत्र के कार्यवाह पद पर रहे. मोहन भागवत की मां मालती बाई भी संघ की महिला शाखा सेविका समिति की सदस्य थी.
चंद्रपुर से स्कूल की पढ़ाई पास करने के बाद उन्होंने शहर के ही जनता कॉलेज में बीएससी में एडमिशन ले लिया था लेकिन उन्होंने ग्रेजुएशन की ये पढ़ाई बीच में ही छोड दी और एक साल बाद ही मोहन भागवत ने चंद्रपुर शहर को भी छोड़ दिया. उनकी जिंदगी का पहला अहम पड़ाव बना महाराष्ट्र का शहर अकोला .
मोहनजी के छोटे भाई चितरंजन जो बैंक ऑफ़ महाराष्ट्र, पुणे और रविन्द्र,चंद्रपुर में एक वकील हैं मोहनजी भागवत बहुत अच्छा बांसुरी वादन और ड्रम भी बजाते है .
मोहन भागवत ने बीएससी की पढाई छोड़कर अकोला के पंजाबराव कृषि विद्यापीठ में वेटरनिटी साइंसेज एंड एनिमल हसबेंडरी के कोर्स में दाखिला ले लिया था. स्नातक की परीक्षा पास करने के बाद उन्होंने आगे पोस्ट ग्रेजुएशन की पढाई के लिए इसी कॉलेज में एडमीशन ले लिया था लेकिन १९७५ में उन्होंने ये पढ़ाई बीच में ही अधूरी छोड़ दी और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का दामन थाम लिया.
श्रीमती इंदिरा गांधी के समय मे अपातकाल के दौरान पढाई को छोड संघ के प्रचार मे स्वयं को समर्पित किया.आपातकाल के दौरान भूमिगत रूप से कार्य करने के बाद १९७७ में भागवत महाराष्ट्र में अकोला के प्रचारक बने और संगठन में आगे बढ़ते हुए नागपुर और विदर्भ क्षेत्र के प्रचारक भी रहे.संघ के प्रचारक के रूप मे संघ को नया आयाम दिया. १९९१ में वे संघ के स्वयंसेवकों के शारीरिक प्रशिक्षण कार्यक्रम के अखिल भारतीय प्रमुख बने और उन्होंने १९९९ तक इस दायित्व का निर्वहन किया उसी वर्ष उन्हें एक वर्ष के लिये पूरे देश में पूर्णकालिक रूप से कार्य कर रहे संघ के सभी प्रचारकों का प्रमुख बनाया गया.
वर्ष २००० में जब राजेन्द्र सिंह (रज्जू भैया) और हो.वे. शेषाद्री ने स्वास्थ्य सम्बन्धी कारणों से क्रमशः संघ प्रमुख और सरकार्यवाह का दायित्व छोडने का निश्चय किया, तब के एस सुदर्शन को संघ का नया प्रमुख चुना गया और मोहन भागवत तीन वर्षों के लिये संघ के सरकार्यवाह चुने गये. मोहन भागवत संघ ने संघ की परंपरा के मुताबिक शादी नहीं की.
२१ मार्च २००९ को मोहन भागवत संघ के सरसंघचालक मनोनीत हुए. उन्होंने भारत और विदेशों में व्यापक भ्रमण किया है. वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख चुने जाने वाले सबसे कम आयु के व्यक्तियों में से एक हैं. उन्हें एक स्पष्टवादी, व्यावहारिक और दलगत राजनीति से संघ को दूर रखने के एक स्पष्ट दृष्टिकोण के लिये जाना जाता है.
मोहन भागवत को एक व्यावहारिक नेता के रूप में देखा जाता है. उन्होंने हिंदुत्व जीवन पद्धति के विचार को आधुनिकता के साथ आगे ले जाने की बात कही है.उन्होंने बदलते समय के साथ चलने पर बल दिया है .लेकिन इसके साथ ही संगठन का आधार समृद्ध और प्राचीन भारतीय मूल्यों में दृढ़ बनाए रखा है.वे कहते हैं कि इस प्रचलित धारणा के विपरीत कि संघ पुराने विचारों और मान्यताओं से चिपका रहता है, इसने आधुनिकीकरण को स्वीकार किया है और इसके साथ ही यह देश के लोगों को सही दिशा भी दे रहा है.
मोहनजी हिंदुत्व जीवन पद्धति की भावना में विश्वास रखते हैं .ये पहले और आज के समय में हमेशा आगे चलने पर बल देते हैं . इन्होंने अनेकता में एकता पर बल दिया है . इन्होंने कहा है कि जातिवाद एवं समाजवाद का संघ में कोई जगह नहीं है . इनका कहना कि भारत एक हिन्दू राष्ट्र है और यहाँ हिन्दुस्तानियों का अधिकार रहना चाहिए . देश में हिन्दुत्व की भावना होनी चाहिए, यह भावना हर हिंदू के घर से होनी चाहिए . समाज में भेदभाव नहीं होना चाहिए . भारत माता के वीर स्वयंसेवकों के बलबूते पर इनका कहना है कि भारत को पुनः परम वैभव के शिखर पर स्थापित करना है जिससे पूरी दुनिया एक बार पुनः मुक्त कंठ से बोल उठे,भारत माता की जय.
हिन्दू समाज में जातीय असमानताओं के सवाल पर, भागवत ने कहा है कि अस्पृश्यता के लिए कोई स्थान नहीं होना चाहिए. इसके साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि अनेकता में एकता के सिद्धान्त के आधार पर स्थापित हिन्दू समाज को अपने ही समुदाय के लोगों के विरुद्ध होने वाले भेदभाव के स्वाभाविक दोषों पर विशेष ध्यान देना चाहिए. केवल यही नहीं अपितु इस समुदाय के लोगों को समाज में प्रचलित इस तरह के भेदभावपूर्ण रवैये को दूर करने का प्रयास भी करना चाहिए तथा इसकी शुरुआत प्रत्येक हिन्दू के घर से होनी चाहिए.
राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ दुनिया का सबसे बड़ा संगठन है. जिससे करीब तीन दर्जन छोटे बडे संगठन जुड़े हुए हैं इन संगठनों का दायरा पूरे देश में फैला हुआ है. देश के सबसे बड़े ट्रेड यूनियन में से एक भारतीय मजदूर संघ, जिसके करीब दस लाख सदस्य हैं. देश का सबसे बडा विद्यार्थी संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद और देश की रूलिंग पार्टी भारतीय जनता पार्टी जैसे संघ के कई और संगठन है. जिन्हें संघ परिवार कहा जाता है. संघ परिवार देश भर में शिक्षा, जनकल्याण और हिंदू धर्म से जुड़े कार्यक्रमों समेत कई क्षेत्रों में हजारों प्रोजेक्ट चला रहा है. और संघ परिवार के इन सारे कार्यक्रमों औऱ उद्देश्यों के लिए दिशा निर्देश देना और उनका वैचारिक मार्गदर्शन करने का काम राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ के सरसंघचालक का होता है.
विदर्भ के महान सपूत मोहन जी भागवत ने अपनी ओजस्वी वाणी, मधुर व्यवहार, विद्वता प्रचुर, व्यवहार चातुर्य आदि गुणो से विदर्भ को संपूर्ण विश्व में गौरवान्वित किया है. उनका व्यक्तित्व युवा वर्ग के लिए प्रेरणादायी है.