श्री गणेश टेकड़ी मंदिर
ॐ गं गणपतये नमो नमः
२७५ वर्षीय प्राचीन स्वयंभू श्री गणेश दरबार
टेकड़ी श्री गणेश की स्वयंभू प्रतिमा का १२ वी सदी से इतिहास उपलब्ध है परन्तु मूलतः यह कितनी प्राचीन है यह ज्ञात नहीं .स्वयंभू गणेश के रूप में प्रसिद्ध सीताबर्डी स्थित श्री गणेश टेकड़ी मंदिर को राष्ट्र में विशेष दर्जा प्राप्त है.यहां जो प्रतिमा है, शायद ही संसार में कही और होगी.प्रथम पूज्य की यह दुर्लभ प्रतिमा पीपल के पेड़ की जड़ से निकली है पीपल के पेड़ के रूप में भगवान विष्णु भी विराजमान हैं. टेकड़ी में भगवान गणेश के साथ-साथ भगवान विष्णु की भी पूजा हो जाती है.इस तरह यहां आने वाले श्रद्धालुओं को प्रथम पूज्य की आराधना के साथ भगवान विष्णु का भी आशीर्वाद मिल जाता है.मान्यता है कि भगवान गणेश और भगवान विष्णु की एक साथ पूजा करने से शनि के सारे कष्ट भी दूर हो जाते हैं.यही वजह है कि चारों पहर यहां भक्तों की भारी भीड़ लगी रहती है.
पुरातन संस्कृति
विदर्भ की संस्कृति महाभारत कालीन संस्कृति है .इसमें नागपुर की ताम्रशाय संस्कृति प्रमुख है .नयाकुण्ड, माहुरझरी , पवनार, टाकलघाट, कोंडयपुर, यहां उत्खनन से प्राचीन संस्कृति के अनेक साक्ष्य प्रकाशिक हुए .नागपुर में नाग संस्कृति हुआ करती थी .नागवंशी राजाओ का सम्बन्ध सातवाहन व वाकाटक वंशियो से था .विदर्भ में पद्मावती नवनाग वंश का शासन था ,तेरह नाग राजा यहां अवतरित हुए वृषनाग ,वृषभनाग, स्कंदनाग, वसुनाग, बृहस्पतिनाग, व्याघ्रनाग, विभनाग,भवनाग, प्रभाकरनाग,देवनग,और गणपति नाग वीरसेन व भारशिव नाग के अनेक सिक्के उत्खनन से प्राप्त हुए में पद्मावती नाग के आखरी नागराज गणपति थे इनको गणपति, गजेंद्र गणपति, गणवेद नाम से भी जाना जाता है .गणपति नाग जो पश्चिम मालवा के स्वामी थे वे श्री गणेश भक्त थे ऐसा उल्लेख शास्त्र में मिलता है .ऐसे तत्थ्य भी मिलते है कि इन्होने ही श्रीगणेश टेकड़ी पर गणेशपीठ की स्थापना की होगी .
गणेश पुराण, मुदगल पुराण व गणेश स्तुति स्तोत्र में श्री गणेश को परब्रह्म स्वरुप माना है.संत ज्ञानेश्वर महराज ने ज्ञानेश्वरी ग्रन्थ में श्री गणेश को ओमकार स्वरूप में प्रतिपादित किया है
मंदिर का इतिहास
नागपुर का प्राचीन इतिहास बहुत विस्तृत है ,किवदंतियो में यह हजारो वर्ष प्राचीन है.दंडक राजा की कर्मभूमि विदर्भ को 'दंडकारण्य' के नाम से जाना जाता है. इतिहास और प्राचीन शिलालेखों का अध्ययन करने के बाद, विदर्भ में वाकाटक साम्राज्य के समय से श्री गणेश की पूजा का प्रमाण भी मिलता है.पहले वाकाटक और बाद में यादव काल में मंदिर का जीर्णोद्धार हुआ था .१२वी सदी में हेमाद्रि पंडित ने मंदिर का जीर्णोद्धार कराया ऐसे भी प्रमाण मिलते है .श्री गणेश अत्यंत प्राचीन होने के अनेक साक्ष्य हैं.
नागपुर में १२ मुख्य स्थान थे. जिन्हें १२ टोली भी कहा जाता था .इनमे सीताबर्डी ,धंतोली और तेलंगखेड़ी का मुख्य उल्लेख है .यादवो (गवलियो) का राज सीताबर्डी में हुआ करता था. सीताबर्डी के तुलोजी नाम के गवली राजा का उल्लेख इतिहास में दर्ज है. उस समय सीताबर्डी की यह टोली सर्वाधिक सम्पन थी. गवली राजा के अतिरिक्त गोसाव्या का भी राज्य शासन उस समय सर्वाधिक सम्पन्न था .
सीताबर्डी नाम भी ऐतिहासिक है यहां शीतला प्रसाद व बद्री प्रसाद यह दो भाई बंधू पराक्रमी धर्मनिष्ठा व्यक्ति थे उनकी प्रसिद्धि भी हुआ करती थी .इन दोनों नाम से मिश्रित नाम बनाकर "सीताबर्डी" नाम पड़ा .गवलियो के साथ यहां गोसाव्या की वसाहत थी .उनके राम और हनुमान मंदिर भी यहां प्रसिद्ध है.
उस समय टेकड़ी पर चरवाहे गाय चराने जाते थे .टेकड़ी के ऊपरी भाग में शिवालय मंदिर भी हुआ करता था जो आज भी है .वही टेकड़ी के निचले भाग में गणेश मंदिर था एक मुख्य गणेश मंदिर और बाजु में दूसरा गणेश मंदिर था जिसे फौजी गणपति मंदिर के नाम से मान्यता थी.
बाद में १२वी सदी में यादवो का राज्य रहा तदुपरांत गोंड राजा ने नागपुर को अपनी राजधानी बनाया १८वी सदी तक मुस्लिम राज्य रहा मंदिर का दुर्लक्ष स्वाभाविक था कालन्तर में मंदिर टूट गया और मूर्ति जमीन में दब गई .१८१७ में टेकड़ी की लड़ाई में पेशवा व भोंसले के गणेशभक्त होने का भी उल्लेख मिलता है .तदुपरांत रघुजी भोसले के कार्यकाल के दौरान, नागपुर को राजधानी का दर्जा मिला. भोसले ने वर्तमान गांधीनगर झील, जुम्मा झील के पास एक महल का निर्माण १८वी सदी में शुरू किया. सीताबर्डी में पहाड़ी की खुदाई से इसके लिए आवश्यक काले बेसाल्ट पत्थर को प्राप्त करना शुरू हुआ. १८६६ में रेल्वे स्टेशन से सुभाष पुतला के रास्तो की खुदाई के समय गणपतिजी की सिंदूर लगी प्रतिमा प्राप्त हुई यह तथ्य भी मिलते है और उस समय भीमराव कुलकर्णी व शंकरराव जोशी पुजारी यहा के थे .
टेकड़ी मंदिर लगभग २७५ वर्ष पुरातन मंदिर बताया जाता है .ज्ञात जानकारी अनुसार शुरुआत में यह मंदिर टिन के शेड और एक छोटे से मंच के साथ साधारण मंदिर हुआ करता था .यह टिन शेड जयनारायण बाबूलाल ने बनवाये जिससे प्रतिमा सुरक्षित रखी गयी बाद में पास ही के आर्मी कैंप द्वारा १९६५ में आसपास की भूमि का अधिग्रहण किया गया था और वर्ष १९७० में इसका प्रथम नवीनीकरण हुआ और १९७८ में यह आर्मी के अधिग्रहण से हट कर सार्वजानिक हुई और पुनः मंदिर का नवीनीकरण १९७८ में फिर से प्रारंभ हुआ जो की वर्ष १९८४ में पूर्ण हुआ .
शिलालेख
कल्याणी चालुक्य नाम का सीताबर्डी टेकड़ी का शिलालेख नागपुर के अजायब बंगले में स्थित है. यह शिलालेख चालुक्य सम्राट व छठे विक्रमादित्य त्रिभुवनमल्ल के मांडलिक महा सामंत की आज्ञा से वासुदेव दण्डक नायक ने इ. सन. १०८७ में बनाया और इसमें गणेशा धर्मपीठ का उल्लेख है जो टेकड़ी गणेश की महत्ता को इंगित करता है. एक अन्य कीर्ति स्तम्भ शिलालेख में श्री गणेश की प्रतिमा का भी उल्लेख है यह प्रतिमा के अति प्राचीन होने की पुष्टि करते है.
केंद्र व राज्य सरकार द्वारा धार्मिक,सांस्कृतिक पर्यटन स्थल सूची में शामिल तीर्थ क्षेत्र
श्री गणेश जी की प्राचीन स्वयंभू प्रतिमा नागपुर के मध्य स्थल में मुख्य रेलवे स्टेशन के पास टेकड़ी किला परिसर में स्थापित है. मंदिर में एक बड़ा हॉल है जिसके बीच में पीपल का विशाल पेड़ है और उसके नीचे गणपति की मूर्ति है. चारों ओर रेलिंग है. मुख्य गणेश जी की प्रतिमा लगभग पांच फीट चौड़ी और तीन फीट लम्बी है .मंदिर का मुख्य द्वार पूर्व की ओर है व मूर्ति का मुख उत्तर की ओर है. इस गणेश टेकड़ी में वर्ष के १२ महीने के त्योहारों और संकष्टी चतुर्थी दस दिवसीय गणेशोत्सव पर लाखों की संख्या में श्रद्धालुगण दर्शनार्थ उपस्थित होते है .श्री गणेशजी के अतरिक्त परिसर में शिवालय, महालक्ष्मीजी, कालभैरव, राम, लक्ष्मण, जानकी, हनुमानजी, श्री राधाकृष्ण, मंदिर भी यहां स्थित हैं .विशेषकर अंगारक चतुर्थी, तिल चतुर्थी पर बड़ी संख्या में महिलाएं अपने परिवार की सुख- समृद्धि के लिए दर्शनार्थ आती हैं .बालक जन्म के समय बालको के साथ माथा टेकने भी बड़ी संख्या में लोग यहाँ आते हैं इसके अलावा शुभ कार्यो में जन्मदिन, नववर्ष, नए दुपहिया व चारपहिया वाहनों की पूजा हेतु और दीपावली, दशहरा, होली जैसे पर्व पर भी श्रद्धालुओं का यहां ताँता लगा रहता है.यहां संकष्टी चतुर्थी के दिन पौष माह में हर साल गणपति नामक यात्रा का आयोजन होता है इसके अलावा गणेश चतुर्थी, गणेश जयंती पर्व अति उत्साह के साथ मनाए जाते हैं.
वर्ष भर के महत्वपूर्ण कार्यक्रम
मंदिर के गर्भगृह में स्थापित श्री गणेश जी की स्वयंभू प्रतिमा को मुख्य तिलक, मुकुट और सिंदूर चोला विशेष पोशाखों से श्रृंगार ,तरह-तरह के मोदक,त्योहारों पर मंदिर की विशेष सजावट की जाती है. मंदिर में पुरोहितो द्वारा संस्कृति, धर्म, आध्यात्मिक विधि से अथर्वशीर्ष पाठ, सामूहिक अभिषेक, कमलपुष्प आवर्तन, स्त्रोत पाठ वाचन, नवग्रह, षोडष मातृका पूजन किये जाते है .समय समय पर स्वास्थ्य सेवा शिविर , सांस्कृतिक कार्यक्रमों, गरबा नृत्य, भजन, कीर्तन के भी आयोजन किये जाते है. यहा निरंतर भक्तो द्वारा महाप्रसाद का आयोजन मंदिर के बाहरी परिसर में होते रहता हैं दीपावली,नववर्ष , गुढीपाडवा,सहित अन्य विशेष आयोजनों के लिए भी श्री गणेश टेकड़ी श्रद्धा विश्वास का स्थान बन चुका है.३१ दिसम्बर की रात्रि में शयन आरती के बाद नव वर्ष का उत्सव मनाया जाता है.
श्री गणेश यज्ञ १९८५ -८६ से संस्था द्वारा प्रति वर्ष गणेश जयंती पर श्री गणेश यज्ञ का आयोजन होता है यह त्रिदिवसीय उत्सव मनाया जाता है पूर्णाहुति वसंत पंचमी को होता है .
गुडीपाडवा :१९९२ से प्रतिवर्ष नव वर्ष उत्सव मनाया जाता है सुगम संगीत ,शहनाई वादन ध्वजा रोहण आदि आयोजन होते है.
गणेश चतुर्थी : प्रत्येक माह के शुक्ल पक्ष चतुर्थी "सिद्धि विनायक चतुर्थी" मनाई जाती है और भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष चतुर्थी को "महा सिद्धि विनायक चतुर्थी" कहा जाता है यह रविवार या मंगलवार को आती है तो इसका महत्व अधिक हो जाता है इस समय यहाँ भक्तो की भारी भीड़ रहती है.
अनंत चतुर्दशी पर प्रति वर्ष ११०० किलो का विशाल लड्डु प्रसाद भोग श्री गणेशजी को अर्पित किया जाता है.
अंगारक चतुर्थी : मंगलवार को पड़ने वाली चतुर्थी को अंगारक या अंगारिक चतुर्थी कहा जाता है. भारद्वाज मुनि को पृथ्वी से जास्वंदी के फूल जैसा लाल पुत्र उत्पन्न हुआ उसका नाम भौम था मुनि के उपदेश से उन्होंने नर्मदा किनारे एकाक्षरी मन्त्र जाप किया माघ वदी चतुर्थी मंगलवार को दशभुज गणपति ने उन्हें दर्शन दिए . श्री गणेशजी ने उन्हें वर दिया की देवता सहित अमृत प्राप्त कर तुम "मंगल" "अंगारक" नाम से जग में जाने जाओगे.तब से इस चतुर्थी का अति विशिष्ट महत्व है .मान्यता है की इस दिन श्री गणेशजी के दर्शन पूजन से सारे कष्टों से मुक्ति मिलती है .
मंदिर के दिनभर की गतिविधिया :श्री गणेश टेकड़ी मंदिर में रोजाना सुबह ४.३० बजे प्रातः आरती ,सुबह ६.३० बजे मंगला आरती, दोपहर १२.३० बजे मध्यान्ह आरती, शाम ७ बजे संध्या आरती, रात्रि ११.३० बजे शयन आरती के बाद मोदक प्रसाद वितरण होता है . व मंदिर के पट बंद किये जाते हैं. २३ अगस्त १९८६ से रोजाना मंदिर में पंच खाद्य नैवेद्य का भोग प्रसाद भगवान को अर्पित किया जाता है . इसके अलावा भक्तो की ओर से प्रसाद वितरण भोजन दान, श्रीफल वस्त्रादि वितरण किए जाते हैं .
मंदिर में वर्षभर होने वाले त्योहार व उत्सव :१. गुढी पाडवा सामूहिक सत्य विनायक ,२. नारली पूर्णिमा ,३. जन्माष्टमी कीर्तन, गोपालकला ४. लघुरूद्राभिषेक श्रवण माह पर ,५. गणेशोत्सव भाद्रपद पर प्रतिमा गणपति निर्माण, अथर्वशीर्ष पठान निबंध, चित्रकला, रंगोली, मेहंदी, नृत्य, सुदृढ़ बालक स्पर्धा. ,६. अश्विन नवरात्रि पर रास गरबा, डांडिया, गोंधळ के कार्यक्रम, ७. कोजागिरी ,८.दिवाली पर पांडव पंचमी ,पंचमी पर लक्ष्मी पूजन ,९. तुलसी विवाह ,१०. तील चतुर्थी ,११. गणेश याग ,१२. महाप्रसाद ,१३. लघुरुद्र अभिषेक महाशिवरात्रि ,१४. संकष्टी चतुर्थी, कालभैरव जयंती, हनुमान जयंती १५. प्रदर्शनी ,१६. अन्य सांस्कृतिक कार्यक्रम भजन, कीर्तन, व्याख्यान के आयोजन
कुंडली दोषों से छुटकारा
गणपति की छोटी सी पूजा आपको कुंडली दोषों से छुटकारा दिला सकती है. इनकी पूजा से शनि कभी भी आपको परेशान नहीं करेंगे. साथ ही मंगल जैसे ग्रहों के दोषों से भी छुटकारा मिल जाता है.नागपुर के टेकड़ी विनायक की ऐसी दिव्य और स्वयंभू प्रतिमा जो शायद ही संसार में कहीं और देखने को मिले.गजानन की यह दुर्लभ मूर्ति पीपल के पेड़ की जड़ से निकली है.
महालक्ष्मी मंदिर
श्री गणेश मंदिर के सामने महालक्ष्मी मंदिर का सभागृह हुआ करता था . यहां दि. १६/०१/१९८९ को पी. आर. सुंदरम के हाथो सभागृह का भूमिपूजन किया गया . १३ मई १९९२ से सभागृह में संगमरमर को महालक्ष्मी की प्रतिमा प्रतिष्ठित की गयी थी . वर्तमान में यह मंदिर के पूर्वी दिशा में मंदिर में स्थापित की गयी है . इस मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा १४ मई १९९२ में संस्था के विश्वस्त माधव कोहले व श्रीमती जयश्री कोहले के हाथों पुरोहित पं नानाजी शास्त्री मुले व ११ ब्राम्हणों के उपस्थिति में किया गया इसी दरम्यान दिल्ली के प्रसिद्द उद्योगपति मूलचंद मालू व श्रीमती विजयादेवी मालू ने श्री गणेशजी की प्रतिमा पर चांदी का मुकुट और स्वर्ण भूषण अर्पित किए. सामने के आंगन में संगमरमर के चित्र तुलसी वृंदावन लखीचंद्र ढोबले ने अपने पिता मारोतराव ढोबले की स्मृति में १९८३ में देवस्थान को भेंट दिए.नवरात्रि में प्रतिवर्ष प्रतिदिन बालिकाओं का गरबा ०७.३० से ०९.३० आयोजित होता है, साथ ही महालक्ष्मी जी का कमल पुष्पों से अभिषेक किया जाता है .
भैरव मंदिर
श्री गणेश मंदिर परिसर में भैरव मंदिर जागृत व आस्था का प्रतीक है .पाषाण निर्मित गर्भगृह में स्थित कालभैरव प्रतिमा को लाल वस्त्र, चमेली के फूल ,उड़द के वड़े इत्यादि भक्तो द्वारा अर्पित किये जाते है
महादेव मंदिर
शिवालय कालभैरव मंदिर के ठीक सामने उत्तरी द्वार के पास बनाया गया है यह पाषाण से निर्मित शिवलिंग के साथ नंदी है जो की दुर्लभ पिंड है . श्रावण माह में यहां रुद्राभिषेक होता है . फूलो की सेज मंदिर की तरफ से सजायी जाती है . १९७० में इस प्रतिमा की स्थापना की गयी थी
राधाकृष्ण मंदिर
गणेश मंदिर गर्मगृह के ठीक पिछले दक्षिणी दिशा में श्री राधाकृष्ण मंदिर का निर्माण किया गया है . यह मंदिर पूर्व में पूर्व कोषाध्यक्ष डॉ. राजेश बहती के प्रयत्न से बनाया गया था . पिता स्व. रतनलाल बाहेती और माता श्रीमती भागीरथीबाई बाहेती की स्मृति में १९८६ में मंदिर बनाया गया . वर्तमान में यह मंदिर दक्षिणी दिशा में पुनर्स्थापित हो चुका है .
श्रीराम दरबार मंदिर
श्रीराम मंदिर में श्रीराम लक्ष्मण, जानकी की सुंदर प्रतिमा की स्थापना मंदिर के पश्चिमी दिशा में की गयी है.
हनुमान मंदिर
श्रीराम दरबार के ठीक सामने श्री हनुमान मंदिर जो की दक्षिणाभिमुख पाषाण प्रतिमा है . अत्यंत दुर्लभ चमत्कारिक सिंदूर लगाई प्रतिमा का दर्शन हजारो भक्त करते है. हनुमान जयंती पर उत्सव भी मनाया जाता है .
श्री गणेश टेकड़ी मंदिर में माथा टेकने अनेक VIP यहाँ आते रहते है
पूर्व प्रधानमंत्री PV नरसिंह राव,केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ,पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ,क्रिकेट विक्रमादित्य व सचिन तेंडुलकर,पूर्व मुख्यमंत्री विलासराव देशमुख ,पूर्व सांसद व अभिनेता सुनील दत्त, पार्श्व गायक अनूप जलोटा, पार्श्व गायक पं जीतेन्द्र अभिषेकी, नर्मदा प्रदक्षिणा के शिल्पकार आबासाहेब गोखले, महाराष्ट्र विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष जयंत तिलक, परमपूज्य डोंगरे महाराज ,महाराष्ट्र राज्य सहकारी बैंक के पूर्व अध्यक्ष रविंद्र दुरुगकर ,शंकराचार्य माता अनुसया, साध्वी ऋतंभरा ,पूर्व विधायक गोविंदराव वंजारी, पूर्व सांसद बनवारीलाल पुरोहित, पूर्व सांसद विलास मुत्तेवार,संत हरि बापा और न जाने कितने प्रभु की कृपा पाने आ चुके हैं.
गणेश मंदिर का जीर्णोद्वार
मंदिर को तोड़े बगैर नए मंदिर के जीर्णोद्वार का श्रीगणेश हो गया है.प्रतिमा की खासियत बनाये रखने के लिए ही मंदिर को बिना तोड़े आधुनिक पद्धति की मशीन का प्रयोग कर नए प्रस्तावित मंदिर का जीर्णोद्वार कार्य यहां शुरू है जमीन से १९ मीटर तक मंदिर की उचाई रखकर कार्य अवनतर डेढ़ वर्ष से शुरू है .पूर्व निर्मित सभामंडप, धार्मिक कार्य स्थल, अगरबत्ती, धुप, दिप, नारियल फोड़ने की जगह ,चरण पादुका स्टैंड का निर्माण नए सिरे से बनाना शुरू है .नए मंदिर का पिलर डालने के लिए पश्चिम और दक्षिण दिशा में खुदाई की जा रही है. इसके पूर्व पश्चिम दिशा में स्थित कुएं को पाटा गया, क्योंकि मंदिर का एक पिलर कुएं के स्थान पर होगा. पश्चिमी और दक्षिणी दिशा में पिलर का काम होने के बाद अन्य दिशाओं में काम शुरू होंगे.
नए मंदिर के लिए भक्तगण मुक्तहस्त से दान दे रहे हैं. नए मंदिर में राजस्थान के भरतपुर जिले के पास स्थित बंसी पहाड़पुर के गुलाबी पत्थरों का उपयोग किया जाएगा. इन पत्थरों पर आकर्षक नक्काशी भी की जाएगी. ग्रेनाइट और मार्बल का इस्तेमाल सजावट के लिए किया जाएगा. सौ साल पुराने पीपल के पेड़ को बचाने के लिए मंदिर के बाहरी डिजाइन में परिवर्तन किया गया है.गुलाबी पत्थरों पर राजस्थान के कलाकार कलाकृति बनाकर मंदिर के जीर्णोद्वार कार्य के लिए रात दिन जुट गए है .
मंदिर के चारो और CCTV कैमरे से मंदिर में दर्शन कर रहे श्रद्धालुओं की सुरक्षा यहां चारो पहर की जा रही है. मंदिर में सेवादल के सदस्य बड़ी संख्या में त्योहारों पर तैनात किये जाते है.मंदिर में भेंट दक्षिणा गोलक रखी गई है . जो की सीलबंद रहती है प्रत्येक संकष्टी चतुर्थी के बाद आनेवाले शुक्रवार को विश्वस्त, भक्तो की उपस्थिती में गोलक खोलकर भक्तों की मदद से रुपये पैसे गिने जाते है . महाराष्ट्र बैंक के कर्मचारी भी नोट गिनने में सहाय्यता करते है . राशि की जानकारी व सूचना फलक पर सार्वजानिक तौर पर भक्तों के लिए लिखी जाती है
अष्टविनायक में से एक
विदर्भ के अष्टविनायक मंदिर यह है १ -टेकडी गणपती, नागपुर ,२ -शमी विघ्नेश, आदासा (जिला -नागपुर) ,३ -अष्टदशभुज, रामटेक (जिला -नागपूर) ,४ भृशुंड, मेंढा (जिला -भंडारा) ,५ सर्वतोभद्र, पवनी (जिला -भंडारा) ,६ -सिद्धिविनायक, केलझर (जिला -वर्धा) ,७ -चिंतामणी , कलम्ब (जिला -यवतमाल),८ -वरदविनायक, भद्रावती (जिला -चंद्रपूर)
मंदिर से प्रकाशित पुस्तक और धार्मिक साहित्य
टेकड़ी चा वरदविनायक का प्रकाशन दी एडवाइजरी सोसाइटी ऑफ़ श्री गणेश टेम्पल की और से वर्ष १९९१ में किया गया .जिसमे इतिहास की जानकारी प्रा. पदवाड ने दी .संपादक व संकलनकर्ता अरुण कुलकर्णी सहयोग माधव कोहले ने किया. इस पुस्तक के मुद्रक श्याम ब्रदर्स है .मंदिर की तरफ से प्रत्येक वर्ष वार्षिक कार्यक्रम पंजिका पंचांग, तुलसी विवाह पत्रिका का प्रकाशन होता है .
विश्वस्त मंडल :
१९३० से १९५२ तक श्री शंकरराव जोशी ने श्री गणेश की सेवा की ,तदुपरांत गोविन्द राव जोशी ने १९५४ सेवा की और मंडल की स्थापना की देश आजाद हो चुका था परन्तु टेकड़ी अभी भी फौज के पास थी ,महाराष्ट्र के प्रथम मुख्यमंत्री यशवंतराव चौहान ने १५० X १५० की जगह दी .देवस्थान की पंजीयन मध्य प्रदेश शासन में २१ फरवरी १९५५ को प्रथम "दी एडवाइजरी सोसाइटी ऑफ़ श्री गणेश" की स्थापना हुई. बाद में २७ नोवेम्बर १९६१ को बॉम्बे पब्लिक एक्ट १९५० के तहत पंजीयन हुआ .
श्री गणेश टेकड़ी मंदिर
सीताबर्डी ,रेलवे स्टेशन के पास नागपुर (महाराष्ट्र )-४४००१२
फ़ोन ०७१२ २०२०३५३